हिमाचल प्रदेश सरकार ने जहां पिछले कल धर्मशाला में अपना एक साल पूरा करने का जश्न मनाया तो वहीं आज मनरेगा व निर्माण मज़दूरों ने उनके लाभ रोकने के लिए प्रदेश में ब्लैक डे मनाया। क्यूंकि राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड द्धारा गत वर्ष 12 दिसंबर को जारी अधिसूचना के तहत मनरेगा मज़दूरों को श्रमिक कल्याण बोर्ड से बाहर कर दिया गया था और उसके बाद 8 फ़रवरी को अन्य निर्माण मज़दूरों के पंजीकरण, नवीनीकरण और उन्हें मिलने वाली सहयता पर सेस की गैर कानूनी शर्त लगाकर उस पर भी रोक लगा कर बोर्ड के सारे लाभ रोक दिए हैं और करोड़ो रूपये की सहायता भी रोक दी है। इसके ख़िलाफ़ आज धर्मपुर खंड की तीन दर्ज़न पंचायतों में उस अधिसूचना की प्रतियां जला कर विरोध प्रकट किया गया और आज के दिन को ब्लैक डे के रूप में मनाया गया। मनरेगा एवं निर्माण मज़दूर यूनियन के राज्य महासचिव भूपेंद्र सिंह के नेतृत्व में भदेहड़ ग्राम पंचायत में मजदूरों ने इस अधिसूचना की प्रतियां जलाई। वहीं यूनियन के खंड अध्यक्ष करतार सिंह के नेतृत्व में सरौंन-चोलथरा तथा अन्यों के नेतृत्व में ग्राम पंचायत गरयोह, टिहरा, कोट, तनिहार, पिपली, सजाओपीपलू, जोढन, डरवाड़, घरवासड्डा, सरी, सिद्धपुर, स्योह, संधोल क्षेत्र इत्यादि की ग्राम पंचायतों में मजदूरों ने इस मज़दूर विरोधी अधिसूचना को जल्द रद्द करने की मांग की।
भूपेंद्र सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में गत वर्ष 11 दिसंबर को बनी कांग्रेस पार्टी की सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले ही दिन यानी 12 दिसंबर 2022 को ये अधिसूचना जारी कर दी थी और मनरेगा मज़दूरों को बोर्ड का सदस्य बनने और उन्हें बोर्ड के लाभों से वंचित किया गया है जिससे मज़दूरों के बच्चों की छात्रवृति, विवाह शादी, मैडिकल व अन्य सभी प्रकार की सहायता रोक दी गई है। एक साल गुज़र जाने पर भी इसे बहाल नहीं किया गया है जिससे हिमाचल प्रदेश के साढ़े चार लाख और धर्मपुर के 15 हज़ार मज़दूरों को सहायता नहीं मिल रही है। इसके अलावा सुक्खू सरकार ने ही 8 फ़रवरी को एक और अधिसूचना जारी की है जिसके तहत घरों में काम करने वाले निर्माण मज़दूरों के लिए सेस अदायगी बारे प्रमाण पत्र देने की शर्त लगा दी है जो पूरी तरह गैर कानूनी है। इसके साथ में ही पंजीकृत निर्माण यूनियनों को रोज़गार प्रमाण पत्र जारी करने से वंचित कर दिया है। इन सब फैसलों के कारण पिछले एक साल से बोर्ड का काम बन्द पड़ा है।
हालाकिं, सीटू मज़दूर यूनियन व अन्य यूनियनें पिछले एक साल से इसका अलग-अलग से विरोध कर रही हैं तथा इस दौरान हुई तीन बोर्ड बैठकों में भी इस रुके कार्य को बहाल करने के प्रस्ताव पारित किए गए हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के इशारे पर अफसरशाही द्वारा ये फ़ैसले लागू नहीं किए जा रहे हैं। इसलिए आज सभी मज़दूर यूनियनें जिनमें सीटू, इंटक, बीएमएस, एटक, टीयूसीसी, एचकेएस सभी ने मिलकर आज से संयुक्त रूप में एक मंच पर इकठ्ठा होकर सरकार व बोर्ड के ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। इस गैर कानूनी रोक पर माननीय उच्च न्यायालय में भी याचिका दायर करने का निर्णय लिया है। आज से शुरू हुए इस सयुंक्त संघर्ष की अगली कड़ी के रूप में 23 दिसंबर को हर जिला से डीसी के माध्यम से मुख्यमंत्री और श्रम मंत्री एवं बोर्ड के अध्यक्ष को ज्ञापन भेजे जाएंगे जिनमें सरकार को बोर्ड का रुका हुआ काम बहाल करने के लिए लिखित में अल्टीमेटम दिया जाएगा और उसके बाद जिला स्तर पर सयुंक्त प्रदर्शन किए जाएंगे।