जापान अन्तराष्ट्रीय सहयोग एंजेसी (जायका)द्वारा वित पोषित हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबन्धन और आजीविका सुधार परियोजना के तहत प्रदेश के 7 जिलों- मंडी, कुल्लू,लाहौल स्पीति,किन्नौर,शिमला, कांगड़ा,बिलासपुर में 460 ग्राम स्तर पर वन विकास समितियां और 900 से ज्यादा स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं जिसके अन्तर्गत लोगों की आर्थिकी में सुधार के लिए स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लगभग 24 आय सृजन गतिविधियां कार्यशील हैं जिनमें मुख्यतःमशरूम उत्पादन, हथकरघा, चीड़ की पत्तियों से बने सजावटी सामान सीरा सेपू बड़ी, टौर की पतले बनाना । इत्यादि हैं ।
परियोजना से लाभान्वित ऐसा ही एक गांव सरकाघाट उपमंडल की भदरौता क्षेत्र की ग्राम पंचायत टिक्कर का है – कठोगण ।यहाँ परियोजना के तहत गठित ग्रामीण वन विकास समिति के अध्यक्ष पवन ठाकुर, सार्जेंट हैं ।पवन ठाकुर बताते हैं कि जायका परियोजना गांव में 14 अगस्त 2020 को कार्यान्वित हुई। उस समय वन विभाग अधिकारी गांव आए तथा इस परियोजना बारे बताया। गांववासियों ने इस बारे सामूहिक विचार विमर्श किया ताकि सही मायने में लाभान्वित हो सकें ।इसमें फॉरैस्ट इकोलॉजिकल मैनेजमैंट प्रोग्राम में पास्थितिक तंत्र प्रबन्धन बनाए रखने हेतु पौधारोपण का कार्य इस गांव में भलीभांति किया जा रहा है जिसमें 20 हैक्टेयर में काम हो रहा है जिसमें 10 हैक्टेयर में विभागीय मोड के तहत व 10 हैक्टेयर पार्टीसिपेटरी फॉरैस्ट मैनेजमैंट मोड में किया जा रहा है। जिसमे 5000 पौधे 10 हैक्टेयर में और 5000 पौधे विभागीय मोड में प्रत्यारोपित किए गए हैं। यह रोजगारपूरक भी है और जलवायु परिवर्तन को रोकने में भी सहायक है।
जीविकोपार्जन कार्यक्रम में परियोजना के तहत दो स्वयं सहायता समूह गांव में गठित किए गए हैं- एक महिलाओं का नैणा माता सिलाई कढ़ाई का समूह है उसमें स्वैटर, गर्म जुराबें, कपड़े का सूट इत्यादि के कार्य करके वस्र आदि बना कर रोजगार का जरिया बना तो दूसरा समूह मशरूम उत्पादन का है । दोनों समूहों को कमेटी द्वारा इन्टरलोनिंग कर आजीविका बढ़ाने के लिए एक-एक लाख रुपये उपलब्ध करवाया गया है ।
परियोजना में 5 लाख रूपये की लागत से कम्यूनिटी हॉल बनाया गया है। निर्माण कार्य में 10 प्रतिशत भागीदारी गांव वासियों की रही। संस्थागत ढ़ांचा मजबूत करने के लिए लोग एक साथ एक स्थान पर बैठकर सरकार की योजनाओं की जानकारी अब सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं ।
ठाकुर ने बताया कि जायका परियोजना के अधिकारियों तथा विशेष कर सेवा निवृत्त डीएफओ -कम- कंसलटेंट वी पी पठानिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही गांव में जायका परियोजना को धरातल पर उतारने की। दोनों समूहों के सदस्य जायका,वन विभाग तथा प्रदेश सरकार के आभारी हैं।
यहां गठित नैना माता स्वयं सहायता समूह की प्रधान रीता कुमारी ने बताया कि दिसम्बर 2020 से सिलाई कढ़ाई व बुनाई का काम शुरू किया जिसके लिए प्रशिक्षण मिला तथा जायका द्वारा आसान दरों पर एक लाख रुपये का लोन भी दिया गया ।ग्रुप में आठ महिलाएँ है जो आपस में लोन की सहायता से लेन देन कर रहे है। सदस्य चम्पा देवी ने बताया कि परियोजना के माध्यम से सिलाई सेंटर सीखा प्रशिक्षण पाया तथा स्वेटर ,कपड़े सिलने, फ्रॉक इत्यादि की सिलाई कढ़ाई कर अपने पैरों पर खड़ा होने का अहसास हुआ वहीं घर का खर्चा उठा पाने सक्ष्म हो पाई ।
जोगणी माता मशरूम ग्रुप कठोगण के प्रधान बालम राम ठाकुर ने बताया कि उनके समूह के 15 सदस्य हैं जो दिसंबर 2020 से कार्य कर रहे है । ढींगरी व बटन मशरूम के उत्पादन का दो दिन का प्रशिक्षण सुंदरनगर व 6 दिन का चम्बाघाट, सोलन में प्राप्त किया तदोपरान्त मशरूम लगाने का काम शुरू किया। यह ऐसी खेती जिसमें जानवरों द्वारा नष्ट करने का डर भी नहीं ।इसमें मशरूम के बेड सुंदरनगर या पालमपुर से लाने पड़ते है। जहाँ ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है। मशरूम उत्पादन पर लगाई राशि का दोगना शुद्ध लाभ मिल रहा है।
समूह के सदस्य रोशन लाल ने बताया कि सुंदरनगर में मशरूम प्रशिक्षण के बाद 15 दिन के डेमो पर मशरूम का काम किया ।सीखा की कैसे मशरूम लगाया जाता है। वहाँ के.वी. के डॉक्टर भी साथ में आये थे। उन्होंने हमें सिखाया। इसमें हमने 60 बैग लगाए, जिसमें हमें बहुत फायदा हुआ। जायका के द्वारा प्रशिक्षण से और समय-समय पर मार्ग दर्शन से काफी ज्ञान मिला। बाद में हम सभी ने ने घरों में मशरूम लगाए। हमें एक बैग का 50 रूपये खर्चा आता है जिससे 3 किलो तक मशरूम निकल जाते है जोकि इसमें 300-400 रूपये तक बाजार में बिक जाते हैं । खेतीबाड़ी के साथ ही सुबह शाम मशरूम का काम हो जाता है। जोकि बहुत ही फायदेमंद योजना है।बटन मशरूम के लिए पालमपुर से कम्पोस्ट लाकर यहाँ उगाते है ।
रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, सरकाघाट रजनी राणा ने बताया कि जायका प्रोजैक्ट रेंज सरकाघाट में 2018 को शुरू हुआ व इसमें बर्ष 2020 से कार्य शुरू । इसमें मुख्यतः 7 वीएफडीएस बनाए जिनमें 14 स्वयं सहायता समूह बने हैं। लोगों का आजीविका निर्माण कैसे करना है और जंगलों की बचाव व संरक्षण करना यह मुख्य जायका की भूमिका है। कठोगण में वीएफडीएस है। यहां दो स्वयं सहायता समूह हैं। एक मशरूम की खेती करता है। इसके लिए लाभार्थियों को प्रशिक्षण दिया गया है, केवीएस सुन्दरनगर मे इनका प्रशिक्षण हुआ है। इसके साथ इनको डैमोन्सट्रेशन भी दिए जाते हैं।दुसरा स्वयं सहायता समूह कटिंग व टेलरिंग का काम करता है। इन्हें भी 2 महीनों का प्रशिक्षण दिया गया तथा अनुदान पर आवश्यक मशीने भी विभाग की तरफ से मुहैया करवाए जा रही हैं। इसके लिए 75 प्रतिशत खर्च विभाग और प्रोजेक्ट वहन करेगा जबकि 25 प्रतिशत लाभार्थी को वहन करना होगा।ये लोन व इन्टरलोन का भी कार्य करते हैं व समूह जो आजीविका कमाते हैं उस को यह अन्य किसी काम पूरा करने के लिए ऋण पर भी देते हैं। प्रोजैक्ट के तहत ही पाईन नीडल की ब्रिकेट्स बनाने का भी प्रशिक्षण तथा डैमोन्सन्ट्रेशन दिया गया । प्रोजैक्ट के अंतर्गत डिपार्टमेंटल मोड में तथा पीएफएम मोड में प्लाँटेशन का कार्य भी करवाया जा रहा है। वित्त बर्ष 2023-24 में 20 हैक्टेयर प्लाँटेशन जाईका प्रोजैक्ट के अंतर्गत करवाई है। साथ साथ ग्राफटेड प्लांट्स में आमला, हरड, भेड़ा, जामून आदि औषधिया पौधे लगाए गए हैं। काम्युनिटी डैवल्पमैंट के कार्य में हाॅल बनाया गया है ।रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाए गए हैं। लोग अपने साथ वाली जगह पर पानी पहुँचा सकते हैं और सिंचाई या अन्य कार्यो में इसका उपयोग कर सकते हैं।इसके अलावा पानी की कुल्हें , पानी के टैंक बनाए गए हैं। बावड़ियों का जीर्णोद्वार का कार्य भी जायका प्रोजेक्ट के द्वारा किया जाता है। दूसरी वीएफडीएस भी हैं उनमें डेयरी उत्पादों का कार्य किया जा रहा है।