सरकाघाट। राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड से मंडी ज़िला के पंजीकृत 80,000 मनरेगा व निर्माण मज़दूरों की वित्तिय सहायता गैर कानूनी तौर पर रोकने के ख़िलाफ़ बीते कल मंडी में सरकार के ख़िलाफ़ पांच मज़दूर संगठनों ने मिलकर प्रदर्शन किया और शहर में रैली निकाली गयी। जिसका नेतृत्व सीटू के राज्य अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा संयुक्त संघर्ष समिति के सयोंजक भूपेंद्र सिंह और राजेश शर्मा, इंटक के वाईपी कपूर, एसकेएस के संत राम और शोभे राम भारद्वाज, टीयूसीसी के रविन्द्र कुमार रवि, भवन निर्माण कामगार संघ के अमन चौधरी और एटक के ललित ठाकुर ने किया। सभी मज़दूर संगठनो के सैंकड़ों कार्यकर्ताओं ने सेरी मंच पर इकठ्ठा होकर शहर में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ रैली निकाली और सुक्खू सरकार के ख़िलाफ़ ज़ोरदार नारेबाजी की और उपायुक्त कार्यालय के मुख्य द्वार पर जनसभा आयोजित की गई।
इस विरोध प्रदर्शन का मुख्य कारण सुक्खू सरकार का वह मज़दूर विरोधी फ़ैसला है जो उन्होंने सत्ता संभालने के पहले ही दिन यानी 12 दिसम्बर 2022 को किया था और अभी तक उसे वापिस नहीं किया गया। सीटू के राज्य अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और संयुक्त संघर्ष समिति के राज्य सयोंजक व बोर्ड के सदस्य भूपेंद्र सिंह ने बताया कि गत माह घुमारवीं में बनी योजना के अनुसार ज़िला स्तर पर प्रदर्शन किए जा रहे हैं और उसी की कड़ी में बीते कल मंडी में पहली विरोध रैली आयोजित की गई और मुख्यमंत्री तथा श्रम मंत्री को उपायुक्त के माध्यम से मांगपत्र भेजा गया।
उन्होंने बताया कि सुक्खू के नेतृत्व में राज्य सरकार द्धारा मनरेगा व निर्माण मज़दूरों को श्रमिक कल्याण बोर्ड से बाहर करने और उनकी सहायता रोकने का फ़ैसला 12 दिसंबर 2012 को लिया था जिसके ख़िलाफ़ सभी ट्रेड यूनियनों ने विरोध किया लेक़िन सरकार ने प्रदेश के साढ़े चार लाख मज़दूरों के करोड़ों रुपए की सहायता रोक दी है और उसके साथ-साथ बोर्ड में पंजीकरण और नवीनीकरण भी रोक दिया है। जिसके खिलाफ जनवरी माह से गांव-गांव में जनअभियान किया गया और अब ज़िला स्तर पर विरोध रैलियां आयोजित की जा रही हैं। 30 जनवरी को मंडी और कुल्लू में रैलियां की गई और 31 जनवरी यानी आज बंजार में 1 फ़रवरी को शिमला, रोहड़ू औऱ रामपुर, 5 फ़रवरी को हमीरपुर, 7 फ़रवरी को धर्मशाला, 8 को ऊना और 9 को बिलासपुर में विरोध रैली होगी और उसी दिन संयुक्त संघर्ष समिति की बैठक बिलासपुर में आयोजित करके अगली योजना तैयार की जाएगी।
बोर्ड सदस्य व टीयूसीसी के राज्य महासचिव रविन्द्र कुमार रवि ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के लिए ये फ़ैसला आत्मघाती होगा और दो महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में उन्हें इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे। जिसने एक तरफ़ मनरेगा मज़दूरों को बोर्ड से बाहर कर दिया है तो दूसरी ओर निजी क्षेत्र में बनने वाले भवनों में कार्य करने वाले मज़दूरों के पंजीकरण के लिए सेस अदायगी और अन्य कई तरह की रुकावटें डाल दी है। इंटक के वाईपी कपूर ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की सरकार ने पंजीकृत निर्माण मज़दूरों की यूनियनों को नियुक्ति पत्र जारी करने के अधिकार से वंचित कर दिया है। उन्होंने कहा कि इंटक और अन्य मज़दूरों ने बड़ी उम्मीद से प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाई थी लेकिन उसने पहले से मिल रही सहयता भी रोक दी है। मुख्यमंत्री से इस बारे में कई बार बात की जा चुकी है लेकिन सुनवाई न होने के कारण इंटक भी अब सड़क पर उतर कर सरकार का विरोध करने के लिए मजबूर हुई है।
उन्होंने कहा कि बोर्ड के लिए सरकार को कोई बजट भी नहीं देना होता है और बोर्ड में सभी निर्माण कम्पनियों व ठेकेदारों द्धारा सेस देने से ही आय प्राप्त होती है जो मज़दूरों के कल्याण पर ख़र्च होती है जो 1996 में बने भवन एवं अन्य निर्माण कामगार क़ानून के अनुसार अदा करना अनिवार्य है। एसकेएस के अध्यक्ष संत राम ने कहा कि प्रदेश सरकार ने ज़िला स्तर पर पिछले साल श्रम कल्याण अधिकारी नियुक्त किये हैं जो क़ानून की व्यख्या मनमाने ढंग से कर रहे हैं और उनकी यूनियन द्धारा जमा करवाए गए दस्तावेजों सबन्धी जानकारी भी उन्हें नहीं दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि बोर्ड में मौखिक रूप में पिछली भाजपा सरकार के समय में ही काम चुप गुप् तरीके से रोक दिया था लेकिन अधिसूचना वर्तमान सरकार के समय में जारी हुई है।सँघर्ष समिति ने मनरेगा मज़दूरों को राज्य सरकार द्धारा घोषित 240 रु दिहाड़ी अभी तक न मिलने पर भी नाराज़गी जतायी है जिन्हें अभी 198 रु ही मिल रहे हैं। जिसका कारण राज्य सरकार द्धारा अपना दस प्रतिशत हिस्सा जारी न करना है। इसलिए उन्होंने सरकार से घोषित 240 रु दिहाड़ी जल्दी जारी करने की भी मांग है।यही नहीं मनरेगा मज़दूरों को प्रदेश सरकार की अन्य दिहड़ीदारों के लिए निर्धारित 375 रु मज़दूरी देने की भी मांग भी सरकार से की गयी और उसके लिए आगामी बजट में प्रावधान करने की मांग की है जैसा कि कांग्रेस पार्टी ने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था।यही नहीं वर्तमान में सौ दिनों के बजाये मज़दूरों को 40-50 दिनों का ही काम मिल रहा है और सरकार काम देने में भी नाकाम साबित हो रही है।