सरकाघाट। ट्रेड यूनियनों के अखिल भारतीय आह्वान पर 16 फरवरी को मंडी में भी सीटू से सबंधित मज़दूर यूनियनें हड़ताल और रैली आयोजित करेंगी। जिसको सफ़ल बनाने के लिए बीते कल मंडी स्थित कॉमरेड तारा चन्द भवन में सीटू ज़िला कमेटी की बैठक ज़िला प्रधान भूपेंद्र सिंह की अध्यक्षता में आयोजित की गई। जिसमें आंगनबाड़ी, मिड डे मील, रेहड़ी फहड़ी, फोरलेन, निर्माण, मनरेगा, आउटसोर्सिंग इत्यादि मज़दूर यूनियनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।सीटू ज़िला प्रधान भूपेंद्र सिंह ने बताया कि ये हड़ताल केंद्र सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों और मज़दूर विरोधी बजट प्रस्तावों के ख़िलाफ़ आयोजित की जा रही है जिसमें अखिल भारतीय स्तर की 11 ट्रेड यूनियनें और किसान संगठन भी भाग लेने जा रहे हैं।
मंडी ज़िला में भाजपा-आरएसएस से जुड़े मज़दूर संगठन बीएमएस के अलावा सीटू, इंटक, एटक,सर्वकामगार कामगार संगठन, टीयूसीसी इत्यादि सन्गठन मिलकर 16 फ़रवरी को मंडी में ज़िला स्तरीय विरोध रैली भी आयोजित करेंगे। उन्होंने बताया कि मोदी सरकार ने मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने 44 श्रम कानून निरस्त कर दिए हैं और बड़ी कम्पनियों के हकों की हिफाज़त के लिए चार कोड बना दिये हैं लेकिन मज़दूरों के विरोध के चलते अभी तक लागू नहीं किये गए हैं।इसी प्रकार तीन काले कृषि कानूनों को भी किसानों के विरोध के कारण वापिस लेना पड़ा था।इसलिए मज़दूर संगठनों की मांग है कि केंद्र सरकार को मज़दूर पक्षी श्रम कानूनों को भी बहाल करने का लेना पड़ेगा। इसके अलावा सरकार की नीतियों के कारण उद्योगों में हायर और फ़ायर की रोज़गार नीति लागू हो रही है। इसके अलावा संसद में पेश किए गए बजट प्रस्ताव में आंगनबाड़ी और मिड डे मील तथा आशा वर्करों के वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं कि गयी है और केवल बीमार होने पर आयुष्मान हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में ईलाज करवाने की बात कही गई है जबकि यूनियन की मांग है कि इन्हें सरकारी कर्मचारी बनाया जाए जो पिछले 48 वर्ष से चल रही योजना में कार्यरत हैं।
ये ही स्थिति मिड डे मील और आशा वर्करों की है।केंद्र सरकार ने बिजली के नए स्मार्ट मीटर लगाने की भी योजना शुरू करने का फ़ैसला किया है और बोर्डो का निजीकरण भी किया जा रहा है।इस फ़ैसले को भी रद्द करने की मांग सरकार से की जा रही है।मनरेगा योजना का बजट जो गत वर्ष घटा कर 60 हज़ार रुपये करोड़ किया गया था उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं कि गयी है जबकि वर्तमान में बने जॉब कार्डों की संख्या को ध्यान में रखा जाए तो लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये के बजट की जरूरत है। मनरेगा में केंद्र सरकार दिहाड़ी मात्र 212 रु दे रही है जबकि यह मूल्य सूचकांक के अनुसार 700 रु होनी चाहिये। बजट कम होने के कारण मज़दूरों को निर्धारित 100 दिनों का रोज़गार भी नहीं मिल रहा है। रेहड़ी फहड़ी मज़दूरों के रोज़गार की रक्षा के लिए बने स्ट्रीट बेंडरज क़ानून को भी निरस्त करने की योजना है जिसके कारण और इस क़ानून को मंडी में सही तरीके से लागू न करने के कारण मंडी में सभी रेहड़ी वाले भी 16 फ़रवरी को हड़ताल करेंगे।
भूपेंद्र सिंह ने बताया कि हिमाचल सरकार द्धारा राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड से पंजीकृत साढ़े चार लाख मज़दूरों की वित्तिय सहायता भी हिमाचल प्रदेश की सरकार ने गैर कानूनी तौर पर रोक दी है जिसके ख़िलाफ़ भी मज़दूर यूनियनें आंदोलन कर रही हैं और इस हड़ताल के दिन ये मांग भी जोर शोर से उठायी जायेगी और इसके बारे विस्तृत चर्चा और योजना निर्माण के लिए 9 फ़रवरी को बिलासपुर में सँयुक्त सँघर्ष समिति की बैठक आयोजित की जा रही है।बैठक में ज़िला प्रधान भूपेंद्र सिंह के अलावा महासचिव राजेश शर्मा, गुरदास वर्मा, रविकांत, गोपेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र कुमार, ललित कुमार, सुरेंद्र कुमार, प्रवीण कुमार, मनीराम, दीपक कुमार,हमिन्द्री, सुदर्शना,बिमला आदि ने भाग लिया।